किस्सा एक पेड़ का है
जो इतने वर्षों में
एक छोटे से अंकुर से
बढ़ते बढ़ते अब
एक विशाल वृक्ष बन गया है।
जूझता, बचता आंधी तूफानों से
उन्हीं से वायु और जल चुराकर
उसने अपने कोंपलों को फैलाया
तना डंठल से तना बना
शाखाएं बनती बढ़ती गईं
जुड़ते गए पत्ते ।
अब वह पेड़ सिर्फ फल ही नहीं देता
व्यथितों की छांव भी है
और हवा में ऑक्सीजन घोलता
ना जाने कितने अनजानों
की वजूद का वजह भी है।
शायद अब वह और बड़ा ना हो
एक वक्त के बाद तना
बाहर से बदलता नहीं
बस हर साल अपने अंदर
एक नया वृत्त जोड़ लेता है।
यह वृत्त, शायद खुद को
नए बोझ - बंधनों से सरोकार
नए जोश से नई प्रतिबद्धता
और कुछ नए वादों
के लिए कमर कसाई है।
नए पत्ते अब भी लगते हैं
टहनी की छाल भी बदलती है
हर साल फल भी मिलते हैं
पर कुछ ऐसा भी है
जो आंखों से दिखता नहीं।
लगातार मजबूत होती जड़ें,
एक एक कर तने में बनती वृत्त
नित घनी होती छांव
और सबके जीने का आधार
ऑक्सीजन ।